Monika garg

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लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-7)# कहानीकार प्रतियोगिता के लिए

गतांक से आगे:-


यह देखकर भूषण प्रसाद घबरा गये ।वे दौड़कर राज के पास गये और उसे पलट कर सीधा किया ।राज होश में नहीं था तभी भूषण प्रसाद ने चौकीदार को आवाज लगाई और पानी लाने को बोला ।

जब पानी का छिड़काव उसके मुंह पर किया गया तो उसे कुछ होश आया और वो चेतना में लौट आया वह होश में आते ही बोला,"मुझे क्या हुआ था ? मैं यहां ऊपर कैसे आया?"

भूषण प्रसाद को बड़ा अचरज हुआ कि राज अपने आप तो सीढ़ियां चढ़ कर ऊपर आया और इस कमरे में आया और अब कह रहा है कि मैं यहां कैसे आया। क्या वो अपने आप में नहीं था?और….और ये चंद्रिका कौन है ।और ये किस देव को खोज रही है ?

बहुत सारे सवाल उसके दिमाग में घूम रहे थे पर प्रत्यक्ष में बस उन्होंने राज को इतना ही कहा ,"तुम कोई घुंघरू की आवाज सुनकर उपर आये थे ये देखने कि कौन घुंघरू बजा रहा है? फिर यहां आकर अचानक बेहोश हो गये।"

"हां अंकल मुझे इतना तो याद है कि ऊपर की मंजिल से घुंघरू की आवाज आ रही थी ।एक अजीब सा खिंचाव महसूस कर रहा था मैं उस आवाज से ।उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ नहीं मालूम।"

भूषण प्रसाद जी राज से ये बात पूरी तरह से छिपा गये थे की राज ने कमरे में जाकर किसी "चंद्रिका "को पुकारा था।

दोनों ने  कमरे को गौर से देखा । बड़ा ही सुसज्जित कमरा था ।एक तरफ तबला,तानपूरा,और रियाज का सामान पड़ा था ।सब पर धूल जमी हुई थी ।जगह जगह सजावट का सामान कमरे में रहने वाले के हुनर को चीख चीखकर बता रहा था।

राज और भूषण प्रसाद उस कमरे की जांच पड़ताल कर रहे थे तभी दीवार से सटकर खड़ी लकड़ी की बड़ी ही एंटीक अलमारी का दरवाजा अचानक से एक झटके से खुला। दोनों दंग रह गये क्योंकि कमरे में कहीं कोई हवा का नामोनिशान नहीं था लेकिन फिर भी अलमारी का दरवाजा कैसे खुल गया लेकिन फिर भी वो अलमारी के पास चले गये । भूषण प्रसाद ने खुले दरवाजे में से देखा एक लकड़ी का संदूक उस अलमारी में नीचे के खाने में रखा है ।बडी ही हिफाजत से रखा हुआ लग रहा था ।तभी वो राज से बोले," देखो राज ,ये बक्सा अलमारी में इस प्रकार रखा गया है कि हर किसी की इस पर निगाह नहीं पड़ती ।चलो एक बार निकाल कर देखें इस में क्या है?"

राज ने तुरन्त बक्सा अलमारी में से निकाला थोड़ी आस पास की धूल झाड़ी और उसे खोल दिया।उस बक्से में एक औरत के पुराने जमाने की नर्तकियों जैसे कपड़े थे ।एक जोड़ी कपड़े देखकर राज चौंक गया क्योंकि ये वही कपड़े थे जो उस दिन बरसात वाले दिन रास्ते में मिली लड़की ने पहन रखे थे।राज ने गौर किया कपड़े सीले-सीले से थे।राज फटाफट उस बक्से से सामना निकालें जा रहा था । घुंघरू,साज श्रृंगार का सामान, और तरह तरह के रेशम के कपड़े।उन कपड़ों में अभी भी इत्र की महक आ रही थी जिस से उस कोमलांगी के शौक का पता चलता था जिसके वो वस्त्र थे।तभी कपड़ों के बीच में छुपी हुई एक संदूकची राज को दिखाईं दी वो चहक उठा ,"अंकल देखो-देखो खजाना मिल गया ज़रूर इसमें सोने के जेवर होंगें बड़े ही एंटीक पीस होंगे ये।आप इसे फटाफट खोलों।"

यह कहकर राज ने वो संदूकची भूषण प्रसाद को दे दी।राज को जो वस्त्रों से महक आ रही थी वो बहुत जानी पहचानी सी लग रही थी।भूषण प्रसाद ने वो संदूकची खोली तो उसमें उन्हें ताड़पत्रों से निर्मित एक डायरी जैसा कुछ दिखाई दिया उन पत्रों को बड़े ही क़रीने से एक दुपट्टे में लपेट कर रखा गया था ।उस दुपट्टे को देखकर राज को जैसे एक झुरझुरी सी आई उसने तुरंत भूषण प्रसाद के साथ से वो दुपट्टा ले लिया और उसे सीने से ऐसे लपेट लिया जैसे अपनी प्रेयसी को लपेट रखा हो।

तभी भूषण प्रसाद को ये लगा कहीं राज को फिर से वही दौरा ना आ जाए उन्होंने उसे झिंझोड़ कर पूछा,"कहां खो गये हो तुम?"

राज एकदम से सकपकाया और बोला,"नहीं अंकल …..बस ऐसे ही ,इसे देखकर ऐसा लगा जैसे इस दुपट्टे से मेरी बहुत पुरानी कोई याद जुड़ी हुई है।"

भूषण प्रसाद ने उन ताड़पत्रों की लिखावट के पढ़ने की कोशिश की तो पाया वो संस्कृत में है । संस्कृत भूषण प्रसाद को समझ नहीं आती थी । उन्होंने वो सारे ताड़पत्र समेट कर उसी संदूकची में रख दिए और सारा सामान वापस उसी बक्से में भरकर उन्होंने वो बक्सा यथास्थान रख दिया।

और दोनों फटाफट नीचे उतर आये और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाकर हवेली से बाहर आ गये।

राज ने बाहर आते हुए एक बात नोट की कि वहां पर सीढ़ियों पर किसी लड़की के कीचड़ से सने पैरों के निशान थे। जल्दबाजी में भूषण प्रसाद की नजर उन पर नहीं पड़ी ।जब वो लोग गाड़ी में बैठे थे तो दोनों ही खामोश थे दोनों के मन में वैचारिक तूफान आया हुआ था।भूषण प्रसाद अपने में ही सोच रहे थे कि आखिर राज का उस लड़की से क्या रिश्ता हो सकता है ।राज को वो लड़की बार बार क्यों दिखाई देती है,वह उस कमरे में "चंद्रिका" कह कर क्यों बेहोश हुआ ।और वो लाल हवेली में लड़की किस देव की बांट जोह रही है और वही लड़की राज के सपने में आती है और उसे देव कहकर बुलाती है।


वहीं राज के मन में भी अंतर्द्वंद्व चल रहा था कि ये जो लड़की बार बार मुझे दिखाई देती है ,कभी रास्ते में,कभी खंडहर में तो कभी सपने में ,ये कौन है ? ये भूत वूत तो नहीं है । क्यों कि मैंने इसकी गुमशुदगी की खबर अखबार में देखी थी। जरूर कोई गड़बड़ झाला है।

दोनों ही सोच रहे थे और घर की ओर जा रहे थे ।तभी राज ने चुप्पी तोडी ," अंकल आप ने कुछ देखा वहां पर ?"

"क्या?"


"वहां पर सीढ़ियों पर कीचड़ से सने  किसी लड़की के पैरों के निशान थे जो उस कमरे तक जा रहे थे।"

*अच्छा मेरी नज़र क्यों नहीं पड़ी इस पर ? वैसे राज तुम अगर एक डाक्टर ना होते तो बहुत अच्छे पुरातत्व अधिकारी होते।बड़ी बारीकी से तुम सब चीजों को देखते हो । वहां पड़े झाड़ झंखाड में मुझे तो किसी लड़की के पैरों के निशान नहीं दिखे।"यह कहकर वो मुस्कुरा दिए।


गाड़ी गन्तव्य की ओर बढ़ी जा रही थी ।शाम होने को थी ।बादल फिर से गहरा गये थे।राज और मिस्टर भूषण प्रसाद घर पहुंचे तो नयना ने खाना लगा दिया था । दोनों ने खाना खाया और सारे दिन के थके होने के कारण सोने चले गये।


सुबह तीन बजे के आसपास राज को फिर से वही घुंघरूओं की आवाज सुनाई देने लगी।


कहानी अभी जारी है………

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1 Comments

Milind salve

03-Aug-2023 03:08 AM

Nice one

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